Sunday, 26 February 2017

हकीकत का अगर अफसाना बन जाए तो क्या कीजे

हकीकत का अगर अफसाना बन जाए तो क्या कीजे, गले मिल के भी वो बेगाना बन जाए तो क्या कीजे. हमें सौ बार कर रे मय्यकशी मंज़ूर है लेकिन, नज़र उसकी अग़र नयख़ाना बन जाए तो किया कीजे. नज़र आता है सजदे में जो अक्सर शैख़ साहिब को, वो जवला, जलवा ए जानाना बन जाए तो क्या कीजे. तेरे मिलने से जो मुझको हमेशा मना करता है, अगर वो भी तेरा दीवाना बन जाए तो क्या कीजे. ख़ुदा का घर समझ रखा है अब तक हमने जिस दिल को, कभी उसमें भी इक बुतख़ाना बन जाए तो क्या कीजे. हकीकत का अगर अफसाना बन जाए तो क्या कीजे..

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