Tuesday, 14 March 2017

अल्फाज़ !

ग़र्दिशों के हैं मारे हुए,
दुश्मनों के सताए हुए हैं !
जितने भी ज़ख़्म हैं मेरे दिल पर,
दोस्तों के लगाए हुए हैं.

इश्क को रोग मार देते हैं,
अक्ल को सोग मार देते हैं,
आदमी ख़ुद बा ख़ुद नहीं मरता,
दूसरे लोग मार देते हैं.

लोग कांटों से बच के चलते हैं,
हमने फूलों से ज़ख़्म खाए हैं.
तुम तो ग़ैरों की बात करते हो,
हमने अपने भी आज़माए हैं.

आसा दीद ले के दुनिया में,
मैने दीदार की ग़दाई की,
मेरे जितने भी यार थे सबने
हसबे तौफीक बेवफाई की.

जब से देखा तेरा कद्दो कामत
दिल पे टूटी हुई है कयामत
हर बला से रहे तू सलामत
दिन जवानी के आए हुए हैं.

और दे मुझको दे और साकी
होश रहता है थोड़ा सा बाकी
आज तल्ख़ी भी है इन्तेहा की
आज वो भी पराए हुए हैं.

कल थे आबाद पहलू में मेरे
अब हैं ग़ैरों की महफिल में डेरे
मेरी महफिल में कर के अंधेरे
अपनी महफिल सजाए हुए हैं.

अपने हाथों से खंजर चला कर
कितना मासूम चेहरा बना
अपने काँधों पे अब मेरे कातिल
मेरी मय्यत उठाए हुए हैं.

महवशों को वफा से क्या मतलब
इन बुतों को खुदा से क्या मतलब
इनकी मासूम नज़रों ने नासिर
लोग काफिर बनाए हुए हैं...

No comments:

Post a Comment

Why UAE and Israel killed President Morsi - "The First Elected leader of Egypt"

“My country is dear even it opressed me and my people are honourable even if they were unjust to me”.  On this day (17 June), th...